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विविध उपन्यास >> रह गईं दिशाएँ इसी पार

रह गईं दिशाएँ इसी पार

संजीव

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :312
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3422
आईएसबीएन :9788126720866

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सृष्टि और संहार, जीवन और मृत्यु के बफर-जोन पर खड़े आदमी की नियति से साक्षात्कार कराता उपन्यास

Raha Gayi Dishayen Isi Paar(Sanjeev)

सृष्टि और संहार, जीवन और मृत्यु के बफर-जोन पर खड़े आदमी की नियति से साक्षात्कार कराता संजीव का यह उपन्यास हिन्दी साहित्य में जैविकी पर रचा गया पहला उपन्यास है। उपन्यास के पारम्परिक ढाँचे में गैर पारम्परिक हस्तक्षेप और तज्जनित रचाव और रसाव इसकी खास पहचान है। निरंतर नए से नए और वर्जित से वर्जित विषय के अवगाहनकर्ता संजीव ने इसमें अपने ही बनाए दायरों का अतिक्रमण किया है और अपने ही गढ़े मानकों को तोड़ा है।

मिथ, इतिहास, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नए से नए विषय तथा चिन्तन की प्रयोग भूमि है यह उपन्यास और यह जीवन और मृत्यु के दोनों छोरों के आर-पार तक ढलकता ही चला गया है, जहाँ काल अनंत है, जहाँ दिशाएँ छोटी पड़ जाती हैं, जहाँ गहराइयाँ अगम हो जाती हैं और व्याप्तियाँ अगोचर...!

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